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पौड़ी गढ़वाल के दार्शनिक स्थल | Pauri Garhwal in Hindi 2024

पौड़ी गढ़वाल के दार्शनिक स्थल | Pauri Garhwal in Hindi 2024

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पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड के 13 जिलों में से एक जिला है, जो जिला मुख्यालय होने के साथ साथ मंडल मुख्यालय भी है। पौड़ी प्राकृतिक सुंदरता से पूर्णता भरपूर है। यह जिला उत्तराखंड के कहीं जिलों से सीमा बनाता है। जिसमें देहरादून, टिहरी, रुद्रप्रयाग के साथ-साथ कुमाऊं मंडल के साथ भी सीमा रेखा बनाता है। पौढ़ी गढ़वाल में कई प्रकार के ऐतिहासिक धार्मिक एवं सांस्कृतिक स्थल है। 1815 से 1840 ई० तक ब्रिटिश राज में गढ़वाल की राजधानी श्रीनगर रही। 1840 के बाद राजधानी को श्रीनगर से Pauri Garhwal स्थानांतरित किया गया और Pauri Garhwal को एक जिले के रूप में स्थापित किया गया।

पर्यटन की दृष्टि से यह जिला बेहद महत्वपूर्ण है। यहां पर अनेक प्रकार की वन संपदा पाई जाती है, जो देश विदेश में निर्यात भी की जाती है। देश आजाद होने के बाद 1970 में पौड़ी गढ़वाल को मंडल का मुख्यालय बनाया गया। समुद्र तल से इस नगर की ऊंचाई 1650 मीटर है। pauri garhwal नगर कंडोलिया पहाड़ी के डाल पर स्थित है, इस नगर का सर्वोच्च शिखर झड़ी धार है, जो बेहद खूबसूरत शिखर है। यहां से आसपास का नजारा बेहद खूबसूरत नज़ारे दिखाई देते है, पौढ़ी गढ़वाल मंडल मुख्यालय होने के कारण यहां पर गढ़वाल मंडल के बड़े-बड़े सरकारी कार्यालय स्थित है। जिसमें कमिश्नरी वह पुलिस रेंज एवं जल निगम के कार्यालय मुख्य है। Pauri Garhwal नगर मंडल मुख्यालय होने के साथ-साथ जिला मुख्यालय भी है। जिसके कारण यहां पर अधिक लोग निवास करते हैं। 1992 में इस नगर को हिल स्टेशन के रूप में विकसित किया गया।

पौड़ी गढ़वाल पूर्व में भौगोलिक रूप से एक बहुत बड़ा जिला था। जिससे 1960 में चमोली जनपद को अलग किया गया। तत्पश्चात 1997 में पौड़ी जिले का कुछ भाग काट कर रुद्रप्रयाग जिले की स्थापना की गई थी। पौड़ी नगर से हिमालय के अनेक पर्वत साक्षात दिखाई देते हैं, जिसमें चौखंबा प्रमुख है। यहां से हिमालय का अर्धवृत्त आकार स्वरूप बेहद आकर्षक दिखाई देता है। pauri Garhwal के ऊपरी भाग में बहुत बड़े क्षेत्र में सघन वन है, जो पौड़ी गढ़वाल में आकर्षण का मुख्य केंद्र है।

विषय सूची

पौड़ी गढ़वाल की तहसीलें – Tehsil of Pauri Garhwal District in Hindi 

1. पौढ़ी2. श्रीनगर3. थलीसैण
4. कोटद्वार5. धुमाकोट6. लैंसडाउन
7. यमकेश्वर8. चौबटाखाल9. सतपुली
10. चाकीसैणं  

पौढ़ी गढ़वाल के ब्लॉक – Block of Pauri Garhwal District in Hindi

1. थलीसैंण2. पणाखेत3. नैनीडांडा
4. पोखड़ा4. रिखणीखाल5. द्वारीखाल
6.यमकेश्वर7. बीरोंखाल8. दुगड्डा
9 लैंसडाउन10 कोट11पौढ़ी
12. कल्जीखाल13. पाबौ14. खिरसु
15. एकेश्वर  

पौढ़ी गढ़वाल के विधानसभा विधानसभा क्षेत्र

1.यमकेश्वर2. कोटद्वार3. चौबटाखाल
4. लैंसडाउन5. पौढ़ी (अनुसूचित जाति)6. श्रीनगर (अनुसूचित जाति)

पौढ़ी गढ़वाल एक नजर में – Pauri Garhwal at a glance in Hindi 

देश – भारत
राज्य – उत्तराखंड
मुख्यालय – पौढ़ी
जिले की स्थापना- 1840
जनपद का क्षेत्रफल- 5329 वर्ग किमी0
विधानसभा क्षेत्र-6संसदीय क्षेत्र-1कुल जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार – 687271
ग्रामीण जनसंख्या – 574568
नगरीय जनसंख्या – 112703

 

साक्षरता दर 2011 की जनगणना के अनुसार – 82.02
पुरूष साक्षरता – 92.71
महिला साक्षरता – 72.60
लिंगानुपात 2011 की जनगणना के अनुसार – 1103
जनसंख्या घनत्व 2011 की जनगणना के अनुसार – 129

पौढ़ी गढ़वाल के दर्शनीय स्थल – Best Tourist Place to Visit in Pauri Garhwal in Hindi

श्रीनगर – Shrinagar in Hindi

बद्रीनाथ मार्ग पर स्थित गढ़वाल का यह शहर बहुत ही खूबसूरत है। Pauri Garhwal से इस शहर की दूरी मात्र 40 किलोमीटर है, यह शहर अलकनंदा के बाएं तट पर स्थित है। यह शहर अब एजुकेशन हब के रूप में पूरे उत्तराखंड में उबर पर रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में यहां (HNBGU) हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय है, जिसे अब केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया है। इसके साथ-साथ यहां पर एक बहुत बड़ा मेडिकल कॉलेज है, जहां पर एमबीबीएस के छात्र पढ़ाई करते हैं।

इस कॉलेज में एमबीबीएस की फीस बहुत कम है। श्रीनगर की स्थापना 1358 ई0 में गढ़वाल के महान नरेश द्वारा की गई थी। श्रीनगर शहर का पौराणिक समय से ही बहुत महत्व है। 1621 तक महीपति शाह के समय तक यह नगर बहुत अच्छी स्थिति में आ गया था। पौराणिक समय में गढ़वाल में बहुत बड़े-बड़े भूकंप आते रहे हैं। इस नगर में भी 1803 में भूकंप ने बहुत बड़ी क्षति हो गई थी।

इस नगर के आसपास आसपास के आसपास आसपास भी बहुत से पर्यटक स्थल है श्रीनगर में गढ़वाल के आसपास के जनपदों की बहुत बड़ी आबादी निवास करती है यह नगर टिहरी और रुद्रप्रयाग जनपदों के साथ सीमा भी बनाता बनाता है ।

धारी देवी मंदिर – Dhara Devi Temple in Hindi

Pauri Garhwal में धारी देवी मंदिर हिंदू धर्म की आस्था का बहुत बड़ा केंद्र है। यह मंदिर श्रीनगर से मात्र 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस जगह का नाम कलियासोड़ है। धारी देवी के विषय में मान्यता है कि यह देवी 1 दिन में कई रूपों में नजर आती है। यह मंदिर पूर्णत काली मां को समर्पित है। धारी देवी ‘श्रीनगर जल विद्युत परियोजना’ के  डूब क्षेत्र में आ गया है। मंदिर को मूल स्थान से 21 फीट ऊंचाई पर बनाया गया है।

सोम का भांडा – Som ka Bhada in Hindi

यह एक ऐतिहासिक स्थान है और देवलगढ़ के समीप आता है पुराने समय में यह स्थल कहीं कहीं राजाओं की राजधानी रह चुका है सोम का भांडा का भांडा एक स्मारक है ।जिसकी दीवारों पर कई प्रकार की कूटलिपि आज भी अंकित है यह लीपी हमारे इतिहासकारों के लिए एक चुनौती बनी हुई है।

देवलगढ़ के आसपास का वातावरण अत्यंत मनमोहक एवं सुंदर है इसके आसपास चीड़ का सुंदरवन है जिसमें गर्मी के मौसम में मंद मंद समीर चलती है देवलगढ़ में सोम के भांडे भांडे के अलावा सिद्ध एवं नाथों की गुफाएं की गुफाएं यहां का आकर्षण का केंद्र है जिसके कारण यहां वर्षभर भर भर भर पर्यटक आते रहते हैं और इस खूबसूरत स्थल का आनंद लेते हैं।

केशोराय मठ – Keshoray Math in Hindi

आज से लगभग 810 वर्ष पूर्व दक्षिण भारत के एक प्रसिद्ध व्यक्ति देव भूमि उत्तराखंड की उत्तराखंड की भूमि उत्तराखंड की उत्तराखंड भूमि उत्तराखंड की उत्तराखंड की चार धाम में बद्रीनाथ की यात्रा पर आए थे थे थे यात्रा पर आए थे थे थे उनका नाम था केशव राय इनके नाम पर ही इस मठ का नाम केशव राय मतठ पड़ा।

एक बार यात्रा के दौरान यह व्यक्ति बहुत थक गए थे थे और श्रीनगर के पास इसी स्थान पर सो गए थे रात में उनको एक सपना आया और भगवान बद्री विशाल ने ने उनको आगे बढ़ने के लिए मना किया स्वप्न में ही भगवान बद्री विशाल ने ने कहा कि जिस स्थान पर आप सोए हो वहीं पर मेरी मूर्ति है। उस व्यक्ति ने भी बात मान लिया और यहीं पर एक

मठ की स्थापना की जो केशो राय मठ के मठ के स्थापना की स्थापना की जो केशो राय मठ के मठ के स्थापना की जो केशो राय मठ के मठ के नाम से प्रसिद्ध हुआ आज इस मठ में में मठ में में पूरे वर्ष भर श्रद्धालु आते हैं और पुण्य अर्जित करते हैं मट के आसपास का वातावरण अत्यंत मनमोहक है जिससे मन को अपार शांति की अनुभूति होती है।

शंकर मठ – Shankar Math in Hindi

एक मान्यता के अनुसार शंकर मठ की स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य जी ने की थी। यह मठ श्रीनगर शहर से मात्र 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं इस मंदिर के गर्भ गृह में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्तियां स्थापित हैं जो मंदिर के आकर्षण का केंद्र है यहां पर भी वर्षभर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है यात्रा सीजन मैं देश-विदेश के श्रद्धालु इस मंदिर में माथा टेकते हैं।

कमलेश्वर मंदिर – Kamleshwar Temple in Hindi

यह मंदिर आस्था के लिए से पूरे गढ़वाल में प्रसिद्ध है ।एक मान्यता के अनुसार जिस व्यक्ति के संतान प्राप्ति नहीं हो रही है यदि वे दंपति बैकुंठ चतुर्दशी के दिन हाथ में घी का दीपक लेकर पूरी रात इस मंदिर में बिताते हैं तो ईश्वर उनको संतान का वरदान जरूर देते हैं ।इसी मंदिर में भगवान राम ने शिव शंकर की उपासना की थी और 1000 कमल के फूल चढ़ावे में चढ़ाए थे जब भगवान राम को ऐसा प्रतीत हुआ कि एक फूल कम है तो उन्होंने प्रायश्चित में अपनी एक आंख भेंट कर दी दी दी भेंट कर दी दी दी थी इसीलिए यह मंदिर अत्यधिक प्रसिद्ध है मंदिर के आसपास का नजारा बेहद खूबसूरत है जिससे यहां वर्षभर पर्यटक आते रहते हैं।

कोटद्वार – Kotdwar in Hindi

गढ़वाल के प्रवेश द्वार के रूप में प्रसिद्ध यह नगर समतल भूमि पर बसा हुआ है और खोह नदी के दाहिने तट पर स्थित है यह नगर पौढी़ गढ़वाल के हृदय स्थली के रूप में भी जाना जाता है इसकी सीमाएं उत्तर प्रदेश के साथ भी लगती है यहां से नजीबाबाद की दूरी मात्र 25 किलोमीटर के आसपास है ।यहां से थोड़ी दूरी पर कलालघाटी नामक स्थल पर सिडकुल स्थापित है और यह नगर चारों ओर से ऊंची ऊंची पहाड़ियों के बीच बसा हुआ है जिससे नगर की शोभा और अधिक बढ़ जाती है ।

इस नगर के समीप ही मोरध्वज का किला है ।जिससे इस नगर के ऐतिहासिक होने के संकेत मिलते हैं कोटद्वार में कृषि योग्य भूमि भी अधिक है नगर के आसपास अनेक पर्यटक एवं धार्मिक स्थल है इसके साथ-साथ नगर के बाहर घने वन वन है घने वन वन घने वन नगर के बाहर घने वन वन है घने वन वन है जिससे नगर की प्राकृतिक सुंदरता में चार चांद लगते हैं यहां पर पौढ़ी गढ़वाल का एकमात्र रेलवे स्टेशन भी है इस स्टेशन से नजीबाबाद के लिए रेलगाड़ियां चलती है कोटद्वार शहर पहाड़ की गोद में बसा हुआ अलौकिक शहर अलौकिक शहर है चार धाम जाने वाले पर्यटक अक्सर इस स्थल पर रुक कर जाने वाले पर्यटक अक्सर इस स्थल पर रुक कर कर आगे की यात्रा प्रारंभ करते हैं।

कण्वाश्रम – Kanvashram in Hindi

कोटद्वार के समीप 10 किलोमीटर की दूरी पर कण्वाश्रम स्थित है यह स्थल पौराणिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षिक रूप से से मुख्यत प्रसिद्ध रहा है ।यहां पर पौराणिक समय में देश विदेश के विद्यार्थी गुरुकुल में अध्ययन करते थे और यहां से शिक्षित होकर देश विदेश में अपने ज्ञान का लोहा मनवा थे। यह स्थल शिवालिक श्रेणी के पर्वत मणिकूट और हेमकूट के मध्य मालिनी नदी के तट पर बसा हुआ है

यहां पर वैदिक शिक्षा के साथ-साथ सांस्कृतिक प्रचार प्रसार का केंद्र भी था विद्वानों के अनुसार संस्कृत के महान कवि कालिदास ने भी इस स्थल से शिक्षा प्राप्त की थी और अभिज्ञान शाकुंतलम् की रचना की थी ।यहां पर एक छोटे से मंदिर में महर्षि कण्व व कश्यप एवं राजा भरत की मूर्तियां आज भी देखने योग्य है राजा दुष्यंत और रानी शकुंतला की प्रेम कथा रानी शकुंतला की प्रेम कथा शकुंतला की प्रेम कथा एवं राजा भरत के जन्म स्थली के रूप के रूप स्थली के रूप के रूप में आज भी साक्षी है ।इसी राजा के नाम पर देश का नाम भारत पड़ा।

सिद्धबली मंदिर – Sidhbali Temple in Hindi

यह मंदिर कोटद्वार से मात्र 2 किलोमीटर व पौड़ी गढ़वाल से 104 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यह मंदिर हनुमान जी को समर्पित है मंदिर ऊंची को समर्पित है मंदिर ऊंची पहाड़ी पर स्थित है जहां पर प्रतिदिन श्रद्धालु दर्शन करने के लिए दूर-दूर से आते हैं, हर मंगलवार को यहां पर विशाल भंडारे का आयोजन होता है। इस मंदिर से पूरे कोटद्वार का दृश्य बहुत ही सुंदर व आकर्षक दिखाई देता है मंदिर के आसपास घने जंगल है जहां अधिकतर हाथी देखने को मिलते हैं मंदिर के ठीक नीचे खोह नदी बहती है जिसमें गर्मी के मौसम में पर्यटक खूब स्नान करते हैं ।

कालागढ़ – Kalagarh in Hindi

कालागढ़ प्रकृति प्रेमियों के लिए वरदान है यह कोटद्वार से मात्र 48 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है कालागढ़ के आसपास घने जंगल है साथ ही यहां रामगंगा साथ ही यहां रामगंगा नदी पर एक बांध बना हुआ है जो कालागढ़ के आकर्षण का केंद्र है यहां पर इस बाद में वोटिंग एवं अन्य प्रकार के साहसिक खेलों का आयोजन भी होता है ।

दुगड्डा – Duggada in Hindi

दुगड्डा पौराणिक समय से ही यानी ब्रिटिश काल से ही पूरे गढ़वाल में व्यापार का केंद्र था पौढ़ी गढ़वाल से इसकी दूरी मात्र 90 किलोमीटर वह कोटद्वार से इसकी दूरी 16 किलोमीटर है यह नगर लंगूर व सीलगाड़ के संगम पर बसा हुआ है। इस नगर को 19वीं सदी में पंडित धनीराम ने अपने खेत में बसाया था ।यह शहर एक राजनीतिक केंद्र भी था था।

यहां से अनेक आंदोलनों की शुरुआत हुई जिसमें कुली बेगार प्रथा डोला पालकी आंदोलन प्रमुख है देश के प्रथम प्रधानमंत्री श्री पंडित जवाहरलाल नेहरू 1930 में प्रथम बार 1930 में प्रथम बार दुगड्डा नगर में पधारे थे तथा दूसरी बार 1945 में यहां पर आए थे ऐसा माना जाता है कि चंद्रशेखर आजाद ने दुगड्डा निवासी भवानी सिंह रावत की प्रेरणा से अपने कुछ नवयुवक साथियों के साथ यहां के जंगल में पिस्टल ट्रेनिंग ली थी।

लक्ष्मण झूला – Lakshman Jhula in Hindi

भारत की सबसे पवित्र नदी गंगा के बाएं तट पर लक्ष्मण झूला स्थित है यहां से दूसरे छोर पर जाने के लिए एक झूला पुल बना हुआ है जिसको लक्ष्मण झूला कहते हैं लक्ष्मण झूला एक सुंदर नगर है जहां पर अक्सर नगर है जहां पर अक्सर है जहां पर अक्सर साधु संत एवं महात्मा एवं महात्मा व अंग्रेज पर्यटक देखने को मिलते हैं ।

लक्ष्मण झूला में बड़े-बड़े धर्मशाला बने हुए हैं जिसमें संबंधित अखाड़े के साधु-संत रहते हैं इसके आसपास हैं इसके आसपास रहते हैं इसके आसपास हैं इसके आसपास का वातावरण मनमोहक एवं सुंदर है यह स्थल सुबह के समय योगा ध्यान इत्यादि क्रियाओं को करने के लिए उपयुक्त है लक्ष्मण झूला में अनेक प्रकार की जल क्रिडाएं होती है जिसमें रिवर राफ्टिंग इत्यादि प्रमुख हैं।

बिनसर महादेव – Binsar Mahadev Temple in Hindi

इस स्थल को बेरणेश्वर स्वामी भी कहा जाता है यह स्थल पौढ़ी गढ़वाल व चमोली गढ़वाल के बॉर्डर पर दूधातोली श्रेणी का प्राचीन मंदिर है यहां पर पुराने मंदिरों के अवशेष भी है। यहां पर कार्तिक पूर्णिमा में एक भव्य मेले का आयोजन होता है जो देखने योग्य होता है इस मेले में राज्य के कुमाऊं और गढ़वाल के लोग एकत्रित होते हैं और बिनसर महादेव से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं यहां पर आकर्षण का केंद्र हैं सूर्यदेव एवं सूर्यास्त का मनोरम दृश्य दिखाई देना।

नीलकंठ महादेव – Nilkant Mahadev Temple in Hindi

लक्ष्मण झूला से 7 किलोमीटर की दूरी पर नीलकंठ महादेव का मंदिर शंभू निशंभू नामक पर्वत पर स्थित है श्रावण के महीने में कांवड़ यात्रा के दौरान यहां पर बहुत बड़ी भीड़ नीलकंठ महादेव के दर्शन करने के लिए उमड़ती है नीलकंठ में आसपास घना जंगल है इसलिए यहां पर वर्षा ऋतु में खूब बारिश होती है और यहां पर ट्रैकिंग के शौकीन पर्यटक पर्यटक ट्रैकिंग भी करते हैं ।

खिरसू – Khirsu in Hindi

खिरसू अपने शांत एवं प्रदूषण मुक्त पर्यावरण के लिए प्रसिद्ध एक सुंदर पर्यटक स्थल है। इसकी दूरी पौड़ी नगर से मात्र 19 किलोमीटर के आसपास है। खिरसू के आसपास घने घने देवदार वह बांज का जंगल है, जो बहुत ही मनमोहक एवं आकर्षक लगता है। इसके साथ-साथ यहां पर सेव के बड़े-बड़े बगीचे हैं, पर्यटकों के लिए यहां एक पार्क बना हुआ है जिसमें अक्सर पर्यटक घूमते हैं और शहरों की भीड़ भाड़ वाली जगह से आए हुए पर्यटक पर्यटक हुए पर्यटक पर्यटक से आए हुए पर्यटक पर्यटक वाली जगह से आए हुए पर्यटक पर्यटक हुए पर्यटक पर्यटक भाड़ वाली जगह से आए हुए पर्यटक पर्यटक हुए पर्यटक पर्यटक से आए हुए पर्यटक पर्यटक वाली जगह से आए हुए पर्यटक पर्यटक हुए पर्यटक पर्यटक यहां एकांत का आनंद लेते हैं पर्यटकों को रुकने के लिए यहां पर सुंदर होटल एवं होम स्टे आवास उचित दर पर उपलब्ध है।

लैंसडाउन – Lansdowne in Hindi

अब लैंसडाउन एक सैन्य नगर है इस खूबसूरत स्थल स्थल नगर है इस खूबसूरत स्थल स्थल है इस खूबसूरत स्थल स्थल का पौराणिक नाम कालो का डांडा था इस नगर की दूरी पौढ़ी गढ़वाल से 83 किलोमीटर है और कोटद्वार से इसकी दूरी 41 किलोमीटर के आसपास है लैंसडाउन में भारत की सेना गढ़वाल राइफल्स का कमांड ऑफिस यहीं यहीं यहीं पर है।

इस नगर के समीप कालेश्वर महादेव का मंदिर है जिसके कारण इस नगर को कालेश्वर भी कहा जाता है जाता है इस नगर को कालेश्वर भी कहा जाता है जाता है भी कहा जाता है यहां पर पर्यटकों के लिए टिफिन टॉप गढ़वाली मैस गढ़वाली मैस मैस ,स्मारक म्यूजियम, है जिसमें वर्ष भर भर बहुत से पर्यटक घूमने आते हैं प्राकृतिक रूप से यह नगर एक वरदान है इसके आसपास सुंदर बांज, बुरांश एवं अन्य प्रजातियों के वृक्ष पाए जाते हैं जिससे नगर की शोभा में चार चांद लगते हैं।

पौढ़ी गढ़वाल कैसे पहुंचे

यदि आप भी उत्तराखंड के इस इस खूबसूरत जनपद पौढ़ी गढ़वाल घूमना चाहते हैं, तो यहां पर आप किस प्रकार से पहुंच सकते हैं, उसका विवरण आपको नीचे दिया गया है।

1. हवाई मार्ग द्वारा
2. रेल मार्ग द्वारा
3. सड़क मार्ग द्वारा

हवाई मार्ग द्वारा 

यदि आप हवाई मार्ग द्वारा पौढ़ी गढ़वाल आना चाहते हैं, तो नजदीकी हवाई अड्डा जौली ग्रांट देहरादून है। दिल्ली से जौली ग्रांट एयरपोर्ट के लिए नियमित रूप से फ्लाइट उड़ान भरती है। जौलीग्रांट पहुंचने के बाद आपको सड़क मार्ग से पौढ़ी गढ़वाल पहुंचना होगा। इसके लिए यहां से प्राइवेट टैक्सी या उत्तराखंड परिवहन निगम की बसें दैनिक रूप से चलती रहती है।

रेल मार्ग द्वारा

यदि आप रेल मार्ग द्वारा पौड़ी गढ़वाल आना चाहते हैं। तो पौढ़ी गढ़वाल में एकमात्र रेलवे स्टेशन कोटद्वार है। इसके अलावा हरिद्वार, ऋषिकेश, देहरादून के स्टेशनों पर भी आप आ सकते हैं, और पौड़ी गढ़वाल पहुंच सकते हैं। देश के विभिन्न रेलवे स्टेशनों से उपर्युक्त स्टेशनों के लिए प्रत्येक दिन रेलगाड़ियां संचालित होती है। उसके बाद आप टैक्सी या बस के माध्यम से पौढ़ी गढ़वाल में प्रवेश कर सकते हैं।

सड़क मार्ग द्वारा

सड़क मार्ग से पौढ़ी गढ़वाल पहुंचना बेहद आसान है। देश के विभिन्न बस स्टेशनों से पौढ़ी गढ़वाल के लिए सीधी बस सेवा से जुड़ा हुआ है। कोटद्वार से पौड़ी गढ़वाल की सड़क मार्ग से दूरी 106 किलोमीटर के आसपास है। पौढ़ी के लिए टैक्सी भी संचालित होती है, जो राज्य के प्रत्येक शहर से आसानी से उपलब्ध हो जाती है।

Google Map Pauri Garhwal

 

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