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टिहरी गढ़वाल में घूमने लायक जगहें | Best Places to Visit in Tehari Garhwal in Hindi | 2024

टिहरी गढ़वाल में घूमने लायक जगहें | Best Places to Visit in Tehari Garhwal in Hindi | 2024

टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड में घूमने लायक जगहें | टिहरी गढ़वाल का इतिहास | Tehri Garhwal Uttarakhand | Places to Visit in Tehri Garhwal | Tehri Dam in Hindi 2023 |

टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल के सबसे सुंदर जनपदों में से एक जनपद है। टिहरी गढ़वाल जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता व साहसिक खेलों के लिए पूरे देश भर में प्रसिद्ध है। यह नगर उत्तराखंड की दो प्रसिद्ध नदियों के संगम पर बसा हुआ था। जो टिहरी बांध बन जाने के कारण 24 अक्टूबर 2005 को पूर्ण रूप से झील में विलीन हो गया है।

टिहरी गढ़वाल का इतिहास।

इस नगर का  पौराणिक समय से ही ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व अत्यधिक रहा है, जिसमें 1815 के आसपास सुदर्शन शाह ने  टिहरी राज्य की राजधानी के रूप में बसाया था। पौराणिक समय में जब भारत में सैकड़ों रियासतें थी। तत्कालीन समय में टिहरी गढ़वाल भी एक बहुत बड़ी रियासत थी। जिसमें समूचा जौनसार बावर  व टिहरी एवं उत्तरकाशी इस रियासत के हिस्से थे।

पुराने समय में यह स्थल गणेश प्रयाग, वह धनुषतीर्थ के  रूप में भी जाना जाता था एक मान्यता के अनुसार यह स्थल सर्वप्रथम घृतगंगा नदी का संगम होता था जो बाद में कुछ धरातल में उथल-पुथल हो जाने के कारण लुप्त हो गई थी। इस रियासत का इतना महत्व था, कि देश आजाद हो जाने के बाद भी इस रियासत ने अपने आप को  राज्य के रूप में बनाए रखा और स्वतंत्रता के उपरांत 1 अगस्त 1949 को टिहरी रियासत को भारत संघ में विलय किया गया और इसे एक जनपद के रूप  स्थापित किया गया।

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टिहरी रियासत को आजादी के बाद से 3 जनपदों में विभक्त किया गया जिसमें 1960 में टिहरी से जनपद उत्तरकाशी अलग किया गया, तत्पश्चात 1997 मैं रुद्रप्रयाग टिहरी से अलग जिला बनाया गया था । पुराना  टिहरी शहर जो टिहरी बांध में विलीन हो गया यह शहर समुद्र तल से 770 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है तथा यह स्थल  ऋषिकेश से 84 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, पुराना टिहरी बहुत ही खूबसूरत शहर था।

आज भी पर्यटन के शौकीन लोग जब उत्तराखंड के चारो धाम यमुनोत्री गंगोत्री, केदारनाथ ,और बद्रीनाथ घूमने जाते हैं तो यह स्थल उनके विश्राम के लिए अति उत्तम है। यहां पर पर्यटक अक्सर रुकते  हैं और अद्भुत सुंदर झील का साक्षात दर्शन करते हैं बांध का कार्य पूरा हो जाने के बाद सरकार द्वारा पुरानी टिहरी से या बांध प्रभावित लोगों को पुनर्वास योजना के तहत पुरानी टिहरी से 24 किलोमीटर दक्षिण में एक नया नगर बसाया गया इस नगर की दूरी ऋषिकेश से 60 किलोमीटर है ।

टिहरी गढ़वाल डैम बन जाने से कहीं गांव इससे प्रभावित हुए है। प्रभावित लोगों का यही पास में नया टिहरी बसा कर पुनर्वास किया गया, लेकिन बहुत सारे लोगों को देहरादून ,हरिद्वार ,ऋषिकेश इत्यादि दूसरे जगहों पर भी पुनर्वास कराया गया। नया  टिहरी एक योजनाबद्ध तरीके से या मास्टर प्लान से बसाया गया शहर है जो दिखने में बहुत ही सुंदर एवं आकर्षक लगता है। कुछ वर्षों तक जनपद के मुख्यालय को नरेंद्र नगर भी  नरेंद्र नगर भी स्तांतरित किया गया और यहीं से  सारे प्रशासनिक कार्य संपन्न होते ।थे लेकिन टिहरी शहर बन जाने के बाद धीरे-धीरे सभी कार्यालयों   को वापस नई टिहरी शिफ्ट कर दिया गया है जिसके बाद अब सभी कार्य नई टिहरी से संचालित होते हैं।

टिहरी गढ़वाल के विधानसभा क्षेत्र

 देवप्रयाग धनोल्टी
 घनसाली टिहरी
 नरेन्द्र नगरप्रताप नगर

टिहरी गढ़वाल की तहसीलें

टिहरी   प्रताप नगरनरेंद्र नगर
देवप्रयागघनसालीजाखणीधार
धनोल्टीकडीसैड़गजा
नैनबागकीर्तिनगर

टिहरी गढ़वाल के ब्लॉक

चम्बाजौनपुरधौलधार
टिहरीप्रताप नगरजाखणीधार
घनसालीकीर्तिनगरनरेंद्र नगर
देवप्रयाग

टिहरी गढ़वाल – एक नजर में

देशभारत
राज्यउत्तराखंड
मण्डलगढ़वाल
मुख्यालयनई टिहरी
जिले की स्थापना1 अगस्त 1949
संसदीय क्षेत्र1
टिहरी गढ़वाल की जनसंख्या
(2011 की जनगणना के अनुसार)
618931
ग्रामीण जनसंख्या548792
नागरीय जनसंख्या70139
जिले का क्षेत्रफल3642
साक्षरता दर 2011 की जनगणना के अनुसार76.36
पुरुष साक्षरता 2011 की जनगणना के अनुसार86.76
महिला साक्षरता दर 2011 की जनगणना के अनुसार64.28
लिंगानुपात  2011 की जनगणना के अनुसार897
जनसंख्या घनत्व 2011 की जनगणना के अनुसार170

टिहरी गढ़वाल के प्रमुख  दर्शनीय स्थल

देवप्रयाग

उत्तराखंड की दो प्रसिद्ध नदियां भागीरथी एवं अलकनंदा के संगम पर टिहरी जिले का यह खूबसूरत शहर बसा हुआ है। इन दोनों नदियों को सास एवं बहु के नाम से भी जाना जाता है।  देवप्रयाग समुद्र तल से मीटर की ऊंचाई पर स्थित है यह वह स्थल है जहां से भारत की सबसे पवित्र नदी गंगा का नामकरण होता है । इसके साथ साथ चार धाम यात्रा के समय यह स्थल बेहद महत्वपूर्ण है है बेहद महत्वपूर्ण है है ।

देवप्रयाग का पौराणिक समय से से ही धार्मिक महत्व रहा है यहां के आसपास का वातावरण एकदम शांत एवं एवं मन को सुंदर लगने वाला वातावरण है एक मान्यता के अनुसार राजा बलि को भगवान विष्णु से 3 पग जमीन देवप्रयाग में ही दान में मांगी थी ।पांचों प्रयागों में ऋषिकेश से जाने की ओर  देवप्रयाग प्रथम प्रयाग के रूप में मिलता है देवप्रयाग में दो महत्वपूर्ण कुंड भी भी भी है।

ब्रह्मा कुंड व वशिष्ट कुंड देवप्रयाग क्षेत्र की एक मान्यता यह भी है कि इस क्षेत्र में कौवे कभी भी दिखाई नहीं देते हैं कहा जाता है की   सतयुग में देव शर्मा एक महान संत ने इस क्षेत्र में कठोर तप किया था जिसके कारण इस क्षेत्र का नाम देवप्रयाग पड़ा।

दूसरी मान्यता के अनुसार इस क्षेत्र को इंद्र प्रयाग भी कहते हैं, इसी स्थल पर भगवान इंद्र ने महादेव की तपस्या कर कठोर तप किया था। जिसके फलस्वरूप उन्हें एक वरदान मिला। उस वरदान के कारण ऋषि दधीचि की हड्डियों से निर्मित बज्र से वृता सुर राक्षस को युद्ध में हराया था।

धार्मिक मान्यता के लिए देवप्रयाग अत्यधिक प्रसिद्ध है यहां पर पिंड दान का विशेष महत्व का विशेष महत्व है। जिससे दूर-दूर के लोग यहां पर पिंडदान करने के लिए आते हैं।

इन्हें भी पढ़े – उत्तर भारत का एक सुन्दर पर्वतीय राज्य उत्तराखंड जिसे देव भूमि भी कहा जाता है। इसके बारे में जानकारी वह यहां के पर्यटन स्थलों की जानकारी के लिए यहां क्लिक करे। 

केंपटी फॉल

उत्तराखंड के प्रसिद्ध झरनों में से एक है केंपटी फॉल यह झरना प्रकृति का खूबसूरत वरदान है यहां पर प्रति वर्ष वर्ष वर्ष बहुत सारे पर्यटक आते हैं और इस प्रपात के प्राकृतिक सुंदरता का आनंद उठाते हैं ।यह स्थल समुद्र तल से 1215 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है मसूरी से इसकी दूरी मात्र 15 किलोमीटर है यह प्रपात सुंदर घाटी में स्थित है इसके आसपास कई प्रकार के कई प्रकार के प्राकृतिक संपदा है।

केंपटी के पास एक रोपवे रोपवे भी है जिसमें प्रतिदिन हजारों की संख्या में पर्यटक बैठते हैं यहां पर एक सुंदर सा बाजार हैं जो पर्यटकों को हमेशा अपनी ओर आकर्षित करता है ।चार धाम जाने वाले पर्यटक यहां एक बार अवश्य रुकते हैं और इस प्राकृतिक इस प्राकृतिक सुंदरता का आनंद जरूर उठाते हैं।

नरेंद्र नगर

यह नगर ब्रिटिश कालीन समय में टिहरी नरेश की राजधानी हुआ करती थी टिहरी नरेश का महल यहां पास के घने जंगल में है जो अब आनंद स्पा के नाम से जाना जाता है। यह ननगर ऋषिकेश से 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और अपने शांत वातावरण के लिए प्रसिद्ध है यहां पर राज्य स्तर के कहीं विभागों के ऑफिस स्थित है जिसमें एससीईआरटी मुख्य है यहां पर पुलिस प्रशिक्षण स्कूल भी है जिसमें सब इंस्पेक्टर तक की तक की तक की अभ्यर्थियों को प्रशिक्षण दिया जाता है।

इसके आसपास घने जंगल हैं जिसमें गर्मी के मौसम में आग लगने का भय बना रहता है छात्रों के लिए यहां पर पॉलिटेक्निक कॉलेज है इसके साथ-साथ माध्यमिक स्तर तक राजकीय इंटर कॉलेज भी यहां पर है माध्यमिक स्तर तक राजकीय इंटर कॉलेज भी यहां पर है।

राजकीय इंटर कॉलेज भी यहां पर है नरेंद्र नगर से ऋषिकेश का सुंदर नजारा दिखाई देता है ऐसा प्रतीत होता है कि ऋषिकेश नरेंद्र नगर की गोद में बसा हुआ एक नगर है नगर है की गोद में बसा हुआ एक नगर है नगर है एक नगर है यह नगर ऋषिकेश से टिहरी जाने वाले मार्ग पर है, समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 1215 मीटर है

सुरकंडा देवी

करोड़ों लोगों की आस्था का प्रतीक है मां सुरकंडा का यह पवित्र स्थान जहां वर्ष भर भर भर जहां वर्ष भर पवित्र स्थान जहां वर्ष भर भर भर जहां वर्ष भर लोग मां के दर्शन करते हैं और पुण्य अर्जित करते हैं मां सुरकंडा का मंदिर प्रमुख सिद्ध पीठों में से एक है में से एक है यह सिद्ध पीठ जौनपुर ब्लॉक में स्थित हैं। धनोल्टी से इसकी दूरी मात्र 8 किलोमीटर दूरी धनोल्टी हैं।

धनोल्टी से इसकी दूरी मात्र 8 किलोमीटर दूरी पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां पर माता सती का सिर गिरा था यह धार्मिक स्थल पूरे राज्य का इकलौता मंदिर है जहां पर गंगा दशहरे मेले का भव्य आयोजन होता है यह मंदिर सुरकुट पर्वत पर स्थित है इस मंदिर की मान्यता है कि सच्चे मन से मंदिर के दर्शन करने से सात जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है इस परिसर से हिमालय की सभी ऊंची चोटियों के दर्शन साक्षात हो जाते हैं।

नाग टिब्बा

टिब्बा और अन्य साहसी खेलों के शौकीन शौकीन के शौकीन के लिए नाग टिब्बा अति महत्वपूर्ण स्थल है क्योंकि यहां पहाड़ियों के आस पास घने जंगल है जो नाग टिब्बा को बेहद खास बनाते हैं यहां स्थल समुद्र तल से 3048 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है नाग टिब्बा ऐसा स्थल है जहां से हिमालय की मुख्यत सभी पर्वत साफ़ दिखाई देते हैं।

जब भी यात्री नागटिब्बा पर ट्रैकिंग करते हैं तो उसके लिए बेस कैंप थत्यूड़ से शुरू करना पड़ता है यह एक बहुत बड़ा ट्रैक है है है जो थत्यूड़ से शुरू होकर सुवाखोली नामक स्थान से होते हुए धनोल्टी व अगलाड़ नदी घाटी से देवलसारी होते हुए नाग टिब्बा तक जाता है देवलसारी भी खूबसूरत स्थल स्थल स्थल है यहां पर भी पर्यटकों को रुकने वह वह वह खाने की उचित व्यवस्था है सर्दी के मौसम में नाग टिब्बा बर्फ से ढका रहता है इस पर्वत पर एक छोटा सा मंदिर भी है जो नाग देवता को समर्पित है स्थानीय लोग नाग देवता को अपना और अपने पशुओं के रक्षक के रूप में मानते हैं।

बूढ़ा केदार

यह स्थल उत्तराखंड में पांचवें धाम के रूप धाम के रूप में विकसित हो रहा है बाल गंगा एवं धर्म गंगा के संगम पर बूढ़ा केदार मंदिर स्थित है। घनसाली से इसकी दूरी दूरी दूरी 31 किलोमीटर व टिहरी से से टिहरी से से 62 किलोमीटर के आसपास है इस मंदिर की बहुत सी पुरानी पुरानी मान्यताएं भी है यहां पर दर्शन करने से जन्मों जन्मों के पापों से मुक्ति मिल जाती है इस जगह का आकर्षण का केंद्र है यहां पर विशाल शिवलिंग का होना, कहा जाता है कि यह शिवलिंग पूरे भारत का सबसे बड़ा शिवलिंग है जिस पर पार्वती द्रौपदी हनुमान इत्यादि अनेक देवी-देवताओं के चित्र उकेरे गए हैं ।

मंदिर परिसर में तीन विशाल प्रकार के त्रिशूल है जो भू शक्ति आकाश शक्ति एवं पाताल शक्ति के नाम से जाने जाते हैं ऐसा माना जाता है कि चार धाम यात्रा करने के पश्चात यात्रा करने के पश्चात यदि यात्रियों ने बूढ़ा केदार की यात्रा नहीं की तो यात्रा अधूरी मानी जाती हैं समुद्र तल से बूढ़ा केदार की ऊंचाई 4400मीटर के आसपास है।

खत् लिंग ग्लेशियर

प्रकृति का वरदान और भिलंगना नदी के उदगम स्थल के रुप में खत लिंग ग्लेशियर प्रसिद्ध है इस ग्लेशियर के दाहिनी ओर दूधगंगा ग्लेशियर स्थित है जो बहुत ही आकर्षक एवं मनोरम दिखाई पड़ता है खत लिंग ग्लेशियर से 6 किलोमीटर की दूरी पर एक रहस्य महि ताल है। जिसका नाम है मसूर ताल जो अद्भुत सुंदर एवं आकर्षक है।

विश्वनाथ गुफा

शंकराचार्य की तपस्थली के रूप में प्रसिद्ध यह गुफा विश्वनाथ पर्वत पर हिंदाव पट्टी के समीप स्थित है इस गुफा में गुरु वशिष्ट ने में गुरु वशिष्ट ने वशिष्ट ने भी तपस्या की थी जिसके कारण इस गुफा को वशिष्ठ गुफा के नाम से भी जाना जाता है गुफा के आसपास का वातावरण अत्यंत आकर्षक एवं सुंदर है

डोबरा चांठी पुल

देश का सबसे लंबा झूला पुल अब देव भूमि उत्तराखंड के उत्तराखंड के भूमि उत्तराखंड के उत्तराखंड के टिहरी जनपद में झील के ऊपर बना हुआ है जब से टिहरी बांध का निर्माण कार्य पूरा हुआ था तभी से इस पुल की मांग तेज हो गई थी। प्रताप नगर के लोग लोग के लोग लोग वर्षों तक आंदोलनरत रहे अब यह पुल पूरी तरह से भारी एवं हल्के वाहनों के लिए खोल दिया है पुल का उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा राज्य स्थापना के मौके पर किया गया था।

यह पुल बेहद खूबसूरत एवं आकर्षक है जिसको गुप्ता एंड कंपनी द्वारा बनाया गया है इस पुल के बन जाने से प्रताप नगर के लोगों ने लोगों ने के लोगों ने लोगों ने राहत की सांस ली और अब उन्हें टिहरी आने में ज्यादा समय भी नहीं लगता है डोबरा चांठी पुल की लंबाई 725 मीटर है जिसमें करीब 3 अरब रुपए खर्च हुए हैं पुल की उम्र करीब 100 साल के आसपास बताई जा रही है।

टिहरी बांध

एशिया के सबसे बड़े बांध के रूप में शुमार यह बांध देवभूमि उत्तराखंड के टिहरी जनपद में स्थित है यह बांध भागीरथी एवं भिलंगना नदी के संगम पर बनाया गया है। बांध की ऊंचाई 260.5 मीटर है टिहरी बांध का निर्माण कार्य 1978 में शुरू हुआ था जो 2006 में पूरा हो गया है आमतौर पर बांध बनाने में कंक्रीट सीमेंट का इस्तेमाल होता है लेकिन टिहरी बांध बनाने के लिए रॉक फील तकनीक का इस्तेमाल किया किया गया है रॉक फील तकनीक तकनीक मिट्टी और पत्थरों से निर्मित होती है इस में भूकंप आने भूकंप आने पर दरार पड़ने का खतरा नहीं रहता है ।

टिहरी बांध की झील 42 वर्ग किलोमीटर में फैली हुई है जिसमें सरकार द्वारा प्रत्येक वर्ष साहसिक खेलों का आयोजन होता है इस झील में राफ्टिंग वोटिंग भी भी होती है साथ ही यह झील पर्यटन हब के रूप में विकसित हो रही है टिहरी झील को रामतीर्थ सागर भी कहते हैं इस बांध की विद्युत क्षमता 24 00मेगावाट है।

बांध का पूरा कार्य जमीन के अंदर से होता है बाहर से सिर्फ आपको झील दिखाई देगी लेकिन अंदर पूरे ऑफिस इत्यादि है जिसमें सैकड़ों कर्मचारी काम करते हैं बांध के आसपास का नजारा बेहद खूबसूरत एवं आकर्षक है ऊंची ऊंची पहाड़ियों के बीच इस सुंदर बांध को देखकर मन को अपार शांति की अनुभूति शांति की अनुभूति मिलती है अब झील के आसपास अनेक होटल खुल चुके हैं जिसमें यात्री रुक कर झील का मनमोहक दृश्य देख सकते हैं।

टिहरी कैसे पहुंचे

टिहरी पहुंचना बहुत आसान है यदि आप भी भारत के किसी भी कोने से टिहरी घूमना आना चाहते हैं तो आप निम्न माध्यमों से यहां पहुंच सकते हैं।

1. हवाई मार्ग द्वारा

2. रेल मार्ग द्वारा

3. सड़क मार्ग द्वारा

हवाई मार्ग द्वारा

टिहरी पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी एयरपोर्ट जौली ग्रांट है यदि आप देश की देश की की राजधानी दिल्ली से टिहरी आना चाहते हैं तो आपको इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे अड्डे हवाई अड्डे अड्डे से देहरादून आना होगा यहां से प्रत्येक घंटे देहरादून के लिए फ्लाइट उड़ाने भरती है ।जो आपको अनुमानित 1 घंटे 15 मिनट में देहरादून हवाई अड्डे में आपको पहुंचा देगी, इसके बाद आपको टैक्सी या बस के माध्यम से टिहरी के लिए निकलना होगा।

रेल मार्ग द्वारा

यदि आप रेल मार्ग से टिहरी आना चाहते हैं तो सबसे  नजदीकी स्टेशन ऋषिकेश रेलवे स्टेशन है देश के विभिन्न रेलवे स्टेशनों से हरिद्वार वह ऋषिकेश के लिए रेल गाड़ियां उपलब्ध गाड़ियां उपलब्ध रहती है जिसके माध्यम से आप ऋषिकेश पहुंचकर उत्तराखंड के इस खूबसूरत जनपद टिहरी गढ़वाल में पहुंच सकते हैं ।

भविष्य में ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल लाइन बन जाने के बाद जाने के बाद टिहरी जनपद का देवप्रयाग रेल मार्ग से जुड़ जाएगा से जुड़ जाएगा इसके बाद टिहरी पहुंचना और भी आसान हो जाएगा

सड़क मार्ग द्वारा

यदि आप सड़क मार्ग द्वारा टिहरी आना चाहते हैं तो देश के विभिन्न बस स्टेशनों से देहरादून, हरिद्वार व ऋषिकेश के बस स्टेशनों के लिए हर समय हर दिन उत्तराखंड परिवहन निगम की बसें और प्राइवेट परिवहन की बसें या टैक्सी उपलब्ध रहती है जिसके माध्यम से आप ऋषिकेश हरिद्वार पहुंच सकते हैं टिहरी पहुंचने के लिए सड़क मार्ग से बहुत ही आसान हैं आप ऋषिकेश से ऋषिकेश से नरेंद्र नगर होते हुए भी टिहरी पहुंच सकते हैं और आप मसूरी नाग टिब्बा होते हुए भी टिहरी पहुंच सकते हैं ।

ऋषिकेश से नई टिहरी की दूरी 76 किलोमीटर के आसपास है इसके अलावा पहाड़ी टूर एंड ट्रेवल्स की बहुत सारी गाड़ियां हर समय मौजूद रहती है जो आपको उचित समय से टिहरी पहुंचा देती है।

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टिहरी गढ़वाल में कितनी तहसील है?

टिहरी में कुल 11 तहसील है।

टिहरी गढ़वाल कौन से राज्य में है ?

टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड राज्य में है।

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